गुमला के दिव्यांग कलावती ने पंचायत को बनाया साक्षर

विशेष संवाददाता द्वारा
गुमला. गुमला सदर प्रखंड के सिलाफारी ठाकुरटोली गांव की कलावती कुमारी (28 वर्ष) दोनों पैर से निःशक्त है. वह बैशाखी के सहारे चलती है. लेकिन कलावती के मजबूत हौसले बुलंद हैं. आज से 10 वर्ष पहले तक कलावती अनपढ़ थी. गरीबी के कारण परिवार के साथ जाकर बाहर मजदूरी करती थी. लेकिन, बुलंद इरादों के बूते उन्होंने मजदूरी कर पैसा कमाये और उसी पैसे से पढ़ाई की. साथ ही साक्षर भारत अभियान से जुड़कर प्रेरक बनी. सबसे पहले अपने अनपढ़ माता पिता को साक्षर की. फिर गांव के 40 अनपढ़ लोगों को पढ़ना-लिखना सिखाया.
बता दे, आज गांव की कई महिलाएं कलावती के कारण पढ़- लिख गयी हैं. महिला समूह से जुड़कर काम कर रही हैं. कलावती कहती हैं कि मैं खुद अनपढ़ थी. माता-पिता ईंट भट्ठा में काम करने सुल्तानपुर जाते थे. मैं भी अपने माता-पिता के साथ मजदूरी करने जाती थी, लेकिन दूसरे बच्चों को स्कूल जाते देख मुझे भी पढ़ने की इच्छा हुई. लेकिन, मेरी निशक्तता बाधा बन रही थी. फिर भी मैंने हार नहीं मानी. मैं मजदूरी के पैसे जमा कर पढ़ाई शुरू की. फिर साक्षरता अभियान से जुड़ी. पहले अपने अनपढ़ माता पिता को पढ़ाया. इसके बाद गांव के 40 लोगों को साक्षर बनाया.
कलावती बताती हैं कि सदर प्रखंड के सिलाफारी लांजी पंचायत है. इस पंचायत में ठाकुरटोली बस्ती है. एक समय था. जब यहां के लोग अनपढ़ थे. बच्चों को बहुत कम स्कूल भेजते थे, लेकिन साक्षरता अभियान का असर यहां दिखा. इस गांव के 40 से अधिक लोग आज पढ़ना-लिखना सीख गये हैं. इतना ही नहीं, अब हरेक बच्चे स्कूल जाते हैं. यहां पढ़ाई को लेकर किसी प्रकार का लाज-शर्म नहीं है. कई उम्रदराज लोग भी पढ़े. हालांकि, कुछ गिने-चुने लोग यह कहकर नहीं पढ़े कि अब पढ़कर क्या करना है. लेकिन, जिनमें सिखने का जज्बा था, उनलोगों ने पढ़ाई की.
गांव की साक्षर महिला शिवानी कुमारी ने कहा कि मेरी उम्र 27 साल है. जब मैं शादी करके सिलाफारी ठाकुरटोली गांव आयी, तो मैं अनपढ़ थी लेकिन मन में पढ़ाई का जज्बा था. शादी के बाद इस उम्र में कैसे पढ़े. यह बात मन में उथल-पुथल कर रहा था. अंत में हमारी गांव की कलावती जो उम्रदराज लोगों को पढ़ा रही थी. मैं भी उसके पास पढ़ने के लिए जाने लगी. जिसका नतीजा है. आज में पढ़ने के अलावा लिख भी लेती हूं. पहले अंगूठा लगाती थी. अब हस्ताक्षर करती हूं. इस तरह से निशक्त कलावती पूरे समाज में एक उदाहरण बन कर सामने आई है जोकि हार नहीं मानी और अपने पंचायत के लोगों को साक्षर बना दिया.

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